'सलाम' ’
___________________-
हुसैन लाए थे प्यारों को करबला के लिए
किया निसार उन्हें मर्ज़ी ए ख़ुदा के लिए,
वतन को छोड़ना,जंगल में आ के बस जाना
ये ग़म उठाए थे इस्लाम की बक़ा के लिए
उधर हज़ारों का लश्कर इधर बहत्तर थे
हर एक काफ़ी था अफ़्वाज की फ़ना के लिए
बुझे चराग़ थे शब्बीर की इजाज़त थी
प नासेराने शहे दीं तो थे वफ़ा के लिए
तमांचे मारता था शिम्र नन्हे बच्चों को
मगर न हाथ उठा कोई बद दुआ के लिए
वो मां कि जिस का जनाज़ा उठा अंधेरे में
उसी की बेटियां मजबूर थीं रेदा के लिए
तड़प के बोली ये ज़ंजीरे आबिदे मज़लूम
मैं बद नसीब बनी तेरे दस्त ओ पा के लिए
सरे हुसैन था नेज़े पे,बे रेदा कुनबा
प क़ैदियों को इजाज़त न थी बुका के लिए
कभी उमीद जो मादूम होने लगती है
अली का नाम ही क़ुवत है बस ’शेफ़ा’ के लिए
_____________________________________________________
निसार=बलिदान; बक़ा=हमेशा रहना; अफ़्वाज=फ़ौज का बहुवचन; नासिर=दोस्त; बुका=रोना;
नेज़े=भाले; दस्त ओ पा=हाथ पैर; मादूम=ख़त्म; रेदा = चादर(परदा)