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सोमवार, 24 जनवरी 2011

सलाम

"राह ए हक़"
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ज़ह्न ओ दिल में गर बसा लें मुस्तफ़ा का रास्ता
ख़ुद ब ख़ुद आए नज़र मुश्किल कुशा का रास्ता

इस तरह शब्बीर के किरदार का क़ाएल हुआ
आख़ेरश हुर छोड़ आया अश्क़िया का रास्ता

बेज़बां नन्हा सा फ़िदिया,, नौ’ए इन्सां ख़ुद चुने
असग़र ए(अ.स.)  ग़ुंचा दहन या हुर्मुला का रास्ता

कर के क़ब्ज़ा नह्र पर तिश्ना वो जब वापस हुआ
आ गया ताज़ीम को बढ़ कर वफ़ा का रास्ता

फूट कर पाओं के छाले रो दिये मज़लूम पर
बेकसी पे ज़ुल्म की इस इंतहा का रास्ता

इक जेहाद ए कर्बला है ,इक जेहाद ए शाम है
ये रह ए अब्बास (अ.स.) ,वो ज़ैनुलएबा (अ.स.) का रास्ता
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