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तू इल्म के दरिया में शनावर की तरह है
और हुब्बे अली ही तेरे यावर की तरह है
वो जिस की बदौलत हैं ज़मीं आसमां रौशन
अब्बास तो इस्लाम के खावर की तरह है
बातिल की जो राहों पे चला मैं ने ये पाया
इक जिस्म नहीं रूह भी लागर की तरह है
शब्बीर पे सब बेटों की क़ुर्बानियाँ दे दीं
माँ क्या कोई अब्बास की मादर की तरह है
इस दश्त में शाह लाये थे चुन चुन के वतन से
हर कोई यहाँ लाल ओ जवाहर की तरह है
किस तर्ह गुनाहों की तलाफ़ी हो 'शेफ़ा' अब
हर एक गुनह शजर ए तनावर की तरह है