एक मुसद्दस पेश ए ख़िदमत है l किसी तमहीद की ज़रूरत मुझे महसूस नही ं हो रही है बस आप की दुआएं और ध्यान चाहती हूं,,,,,शुक्रिया
"एक मुसद्दस "
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1
उन को मालूम था वापस वो नहीं आएंगे
उन को मालूम था बेटी से न मिल पाएंगे
क़ब्र ए नाना से हमेशा को बिछड़ जाएंगे
दफ़्न भी ख़ाक ए वतन में नहीं हो पाएंगे
फिर भी इस्लाम और उम्मत की बक़ा की ख़ातिर
आए वो कर्ब ओ बला राह ए ख़ुदा की ख़ातिर
2
एक ज़ालिम की सिपह तालिब ए बै’अत होगी
जानते थे वहाँ हर तर्ह शक़ावत होगी
जानते थे कि वहाँ फ़ौज ब कसरत होगी
जानते थे वहाँ हथियार की ताक़त होगी
पर यक़ीं अपने वफ़ादारों पे मासूम (अ.स.)को था
हाँ बहत्तर पे भरोसा शह ए मज़लूम (अ.स.)को था
3
सिर्फ़ गर्दन के कटाने को नहीं आए थे
सिर्फ़ इक दश्त बसाने वो नहीं आए थे
सिर्फ़ दुनिया को दिखाने वो नहीं आए थे
सिर्फ़ घर बार लुटाने वो नहीं आए थे
वो तो लाए थे मुहम्मद (स.अ.) के मिशन का पैग़ाम
और दुनिया को बताया कि यही है इस्लाम
4
बंद पानी की अज़ीयत शह ए दीं (अ.स.) सहते रहे
सुल्ह की कोशिशें भी शाह ए ज़मन (अ.स.) करते रहे
अपनी जानिब से न हमला हो यही कहते रहे
फिर भी ज़ालिम तलब ए बै’अत ए शर करते रहे
दामन ए सब्र भी ज़िनहार न छूटा शह (अ.स.)का
और बै’अत से भी इंकार न टूटा शह(अ.स.) का
5
हाँ ये इस्लाम की तारीख़ दिखाती है हमें
उन की फ़ितरत में था ईसार बताती है हमें
ज़ुल्म के बदले न हो ज़ुल्म ,सिखाती है हमें
नफ़्स पर क़ाबू रहे ,याद दिलाती है हमें
दौर ए हाज़िर में जो कहते हैं ,,जिहादी हैं वो
तोड़ कर दीं के उसूलों को फ़सादी हैं वो
6
ज़ब्ते अब्बास (अ.स.) बताता है कि कैसे हो जेहाद
लश्कर ए शाह (अ.स.) बताता है कि कैसे हो जेहाद
इक तबस्सुम ये बताता है कि कैसे हो जेहाद
सब्र ए बीमार बताता है कि कैसे हो जेहाद
फिर जेहाद ऐसा हुआ और न जेहादी ऐसे
कर्बला जैसी न थी जंग ,न ग़ाज़ी ऐसे
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बक़ा =अमरत्व (eternity) ; सिपह = सेना ; तालिब ए बै’अत = राजभक्ति (allegiance) चाहने वाला
शक़ावत = क्रूरता ; ब कसरत = बहुत अधिक ; मज़लूम = जिस पर ज़ुल्म हुआ हो
दश्त = जंगल ; अज़ीयत = तकलीफ़ ; ज़िनहार = किसी भी हाल में /कभी नहीं;
ईसार = बलिदान ;