इबादत
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माह ए रमज़ान के मुक़द्दस मौक़े पर एक क़ता हाज़िरे ख़िदमत है
ये चार दिन जो ख़ुदा ने अता किये हैं यहां
इबादतों में गुज़ारो यही है राह ए अमां
ये भूल जाओ कि कुछ नागवार गुज़रा था
ख़ुलूस का ये समंदर भला मिलेगा कहां
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