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गुरुवार, 9 दिसंबर 2010

मुहर्रम के सिलसिले से चंद अश’आर पेश ए ख़िदमत हैं
अश्क ए अज़ा
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अल’अतश की थीं सदाएं प न पानी पहुंचा
सब्र वो देखा कि ख़ुद रह गया प्यासा पानी
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कहीं जो प्यास से बच्चा कोई तड़पता हो 
तसल्ली हो उसे तश्ना दहां की बात करें
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अल्लह के क़ुर्ब की है तमन्ना तुम्हें अगर
किरदार हो रसूल के अनसार की तरह
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नहीं ज़माने में ऐसा जरी कोई देखा
वफ़ाएं जिस की वफ़ा को सलाम करती हैं
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इस तरफ़ सिर्फ़ बहत्तर थे ,उधर थे लाखों
इस तरफ़ शेर अकेला उधर असवार बहुत
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न इज़न ए जंग मिला ,फिर भी जंग जीत लिया
’शेफ़ा’ ये मा’रेका अब्बास की शजा’अत है
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