एक ना’त ए शरीफ़ पेशे ख़िदमत है ,अगर आप को पुर असर मह्सूस हो तो दुआओं से नवाज़ कर शुक्र गुज़ार होने का मौक़ा अता फ़रमाएं
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ना’त ए शरीफ़
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मेरे मौला तू बुला मुझ को कि दर देख सके
ये गुनह्गार मुहम्मद का नगर देख सके
मुस्तफ़ा ख़ुल्क़ का हामी,है अमीनों का अमीं
तेरा हर राज़ अमानत ,तू अगर देख सके.
वो तो है नूर हर इक चश्म की ज़द से बाहर
जिस्म हासिल था उसे ,ताकि बशर देख सके
अपनी उम्मत के लिये जिस ने दुआएं की थीं
और ये कोशिश थी उसे शीर ओ शकर देख सके
न अदावत ,न शक़ावत , न रेज़ालत होगी
तेरा किरदार जो दुनिया की नज़र देख सके
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ख़ुल्क़ =अच्छा व्यवहार ; हामी = मानने वाला ; अमीन =अमानत रखने वाला,ईमानदार;
ज़द =लक्ष्य ;अदावत =दुशमनी ; शक़ावत =ज़ुल्म ; रेज़ालत =नीचता(व्यवहार की )