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शुक्रवार, 26 फ़रवरी 2010

नात ए शरीफ़

एक ना’त ए शरीफ़ पेशे ख़िदमत है ,अगर आप को पुर असर मह्सूस हो तो दुआओं से नवाज़ कर शुक्र गुज़ार होने का मौक़ा अता फ़रमाएं
.
ना’त ए शरीफ़
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मेरे मौला तू बुला मुझ को कि दर देख सके 
ये गुनह्गार मुहम्मद का नगर देख सके

मुस्तफ़ा ख़ुल्क़ का हामी,है अमीनों का अमीं
तेरा हर राज़ अमानत ,तू अगर देख सके.

वो तो है नूर हर इक चश्म की ज़द से बाहर
जिस्म हासिल था उसे ,ताकि बशर देख सके

अपनी  उम्मत के लिये जिस ने दुआएं की थीं
और ये कोशिश थी उसे शीर ओ शकर देख सके 

न अदावत ,न शक़ावत , न रेज़ालत होगी 
तेरा किरदार जो दुनिया की नज़र देख सके 
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ख़ुल्क़ =अच्छा व्यवहार ; हामी = मानने वाला ; अमीन =अमानत रखने वाला,ईमानदार;
ज़द =लक्ष्य ;अदावत =दुशमनी ; शक़ावत =ज़ुल्म ; रेज़ालत =नीचता(व्यवहार की )




सोमवार, 22 फ़रवरी 2010

naat e paak

जनाब शाहिद मिर्ज़ा 'शाहिद' साहब की कही हुई नात ए पाक मुलाहिज़ा फ़रमाएँ और इस मुक़द्दस नाम के सदके में दुआओं  से नवाज़ें ,शुक्रिया .
"नात ए पाक "
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मोमिन की कसौटी है, किरदार मुहम्मद का
देखा है   मसीहा भी ,बीमार मुहम्मद का 

  उम्मत के लिए रब से बख्शिश की दुआ माँगी 
देखो तो जहाँ वालो ,ये प्यार मुहम्मद का 

कहते हो क़यामत तुम, मैं ईद समझता हूँ 
महशर में जो होना है दीदार मुहम्मद का 

सर अपने झुकाए हैं ,शाहों ने भी अज़मत को 
ऐसा है मदीने में दरबार मुहम्मद का 

गौहर से   बरसते हैं ,उस शख्स की आँखों से 
जो देख के आया हो घर बार मुहम्मद का

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