कई माह के बाद एक हम्द ए पाक पेश ए ख़िदमत है
हम्द ए बारि ए ता’ला
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ऐ मालिक ए सज़ा ओ जज़ा ,सादिक़ ओ अमीं
ऐ ख़ालिक़ ओ रहीम ओ वली ,रब्बुल आलमीं
दरिया, पहाड़ तूने बनाए जहान में
और वो परिंद उड़ते हैं जो आसमान में
इन्साँ को बख़्शी इल्म की दौलत क़ुरान में
ऐ मालिक ए सज़ा................................
ऐ ख़ालिक़ ओ रहीम.............................
जीने का हम को तूने सलीक़ा सिखा दिया
राह ए बहिश्त तेरे नबी(स.अ.) ने बता दिया
तेरि रज़ा से ईसा ने मुर्दा जिला दिया
ऐ मालिक ए........................................
ऐ ख़ालिक़ ओ ....................................
वो दिन हो या कि रात नुमायाँ जगह जगह
हर शै में तेरी ज़ात नुमायाँ जगह जगह
मालिक तेरी सिफ़ात नुमायाँ जगह जगह
ऐ मालिक ए ........................................
ऐ ख़ालिक़ ओ .....................................
माँ , बाप ख़ानदान का साया दिया मुझे
सद शुक्र है कि माँ का भी रुतबा दिया मुझे
हर शै में तेरी ज़ात नुमायाँ जगह जगह
मालिक तेरी सिफ़ात नुमायाँ जगह जगह
ऐ मालिक ए ........................................
ऐ ख़ालिक़ ओ .....................................
माँ , बाप ख़ानदान का साया दिया मुझे
सद शुक्र है कि माँ का भी रुतबा दिया मुझे
लौह ओ क़लम का क़ीमती तोहफ़ा दिया मुझे
ऐ मालिक ए .......................................
ऐ ख़ालिक़ ओ .....................................
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