'सलाम'
------------------------
वो शाहे काइनात भी मुश्किल कुशा भी है
बिस्तर पे जो अली भी है ,खैरुल्वरा भी है
फर्शे अज़ा से इल्म की शम'आ जला के उठ
किरदारे शाह ज़हन की इक इर्तेक़ा भी है
इंसानियत के वास्ते जो इक सबक़ बनी
तारीख़ साज़ ऐसी कोई कर्बला भी है
ये मजलिसें मदरसा हैं यौमुल्हिसाब का
"ज़िक्रे हुसैन दर्द भी है और दवा भी है"
हर बेनवा ओ ,बेकस ओ ,तनहा के वास्ते
आबिद ज़बाँ है,आसरा है,रहनुमा भी है
तूफाँ जो आये खौफ का इमराज़ का कभी
हैदर का नाम क़ुवाते दिल भी 'शेफ़ा' भी है
____________________________________-
-------------------