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शुक्रवार, 27 नवंबर 2009

नात

ज़ाहिर हुई है सुब्ह नए आब-ओ-ताब की
दिखलाने आ गया कोई राहें सवाब की

है आखरी रसूल की आमद जहान में
कुर्बान खुद  को करती है खुशबू गुलाब की

ज़ुल्मत कदा था मुल्के अरब जहलो मक्र का
लाये रसूल रौशनी रब की किताब की 

ताज़ीम कर के फ़ातेमा की दरस दे दिया 
यूं कद्र होनी चाहिए इस्मत म -आब की


बेटी  की अहमियत को बयां इस तरह किया
रहमत है ये ,नहीं कोई गठरी अज़ाब  की

हो जब भी फ़िक्रो फ़ह्म की इल्मो अमल की बात
तस्वीर इक उभरती है बस बुतोराब

दह्शत्गरी से पाक है दीन-ए-मुहम्मदी
इंसानियत तो रूह है दीनी नेसाब की

मौजूद दरमियाँ हक-ओ-बातिल के है सेरात
मौला मुझे नज़र दे सही इंतेखाब की

रंगीनिये जहाँ में मिलेगा ना कुछ 'शेफ़ा'
तू उस पे चल जो राह है आलीजनाब की

_________________________________________________________________








 की 





8 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ही तक़द्दुस के साथ आपने नात-गोई की है.हमारे वालिद-ए-मुहतरम कहा करते हैं कि ये पुलसिरात से गुजरने सा काम है वही चल पाते हैं जो सिरात-अल-मुस्तकीम पर चलते हैं.आपने बहुत उम्दा कोशिश कि है.कभी मैंने भी इस तरफ ज़ोराजमायिश कि थी..इक शे'r याद आता है अपना:
    ये तो आपकी ही आमद थी
    वरना आदम को क्या कमी होती

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  2. bahut bahut shukria shahroz sahab,agar kisi kalam par fauran response mil jaye to bahut khhushi hoti hai .agar mumkin ho to asap mere doosre blog ko bhi padhne ki zahmat karen aur isi tarah apni qeemti tabseron se nawazte rahen ,khhuda hafiz.

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  3. Subhan Allah... Ba maqsad shairi ki taraf aap ki yeh koshish Allah kamyaab kare. Halaan ki aap ki kavitaen bhi maqsad se khali nahin hain magar jo baat Naat aur Salaam main hai wo aam shairi main kahan. Khaas taur par woh naat or salaam jo halat-e-hazra ke mutabiq ho. Insha Allah, ummeed hai ki aur parhne ko milega.

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  4. ताज़ीम कर के फ़ातेमा की दरस दे दिया
    यूं कद्र होनी चाहिए इस्मत म -आब की

    बेटी की अहमियत को बयां इस तरह किया
    रहमत है ये ,नहीं कोई गठरी अज़ाब की

    सुबहान अल्लाह......... सुबहान अल्लाह

    अब तक इस कलाम से महरूम रहा..
    इंशा अल्लाह आइंदा नहीं...
    शाहिद मिर्ज़ा शाहिद

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  5. aapne lajawab kar diya hai...
    .....isse zyada kuchh na kahungi
    ki aapke Kalaam ko parhne ka mauqa
    mila yehi meri khushnaseebi hai...
    shukriya ....aise Behatareen Kalaam ke liye..

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  6. ज़ुल्मत कदा था मुल्के अरब जहलो मक्र का

    लाये रसूल रौशनी रब की किताब की

    ताज़ीम कर के फ़ातेमा की दरस दे दिया

    यूं कद्र होनी चाहिए इस्मत म -आब की

    बेटी की अहमियत को बयां इस तरह किया

    रहमत है ये ,नहीं कोई गठरी अज़ाब की
    बहुत खूब इस्मत बाजी

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