बहुत खूबसूरत शेर है इस्मत साहिबा... और दो शेर याद दिला गया... 1- तू अगर मुझे नवाज़े ये तेरा करम है वरना ...तेरी रहमतों का बदला मेरी बंदगी नहीं है और सईद खां सईद का ये शेर भी मुझे बहुत पसंद है- 2- मेरे गुनाह की हद है तेरे करम की नहीं ...तू बख्श देता है छोटे से इक बहाने पर
इस्मत जी बहुत खूबसूरत शेर है। शुभकामनायें।
जवाब देंहटाएंबहुत खूबसूरत शेर है इस्मत साहिबा...
जवाब देंहटाएंऔर दो शेर याद दिला गया...
1- तू अगर मुझे नवाज़े ये तेरा करम है वरना
...तेरी रहमतों का बदला मेरी बंदगी नहीं है
और सईद खां सईद का ये शेर भी मुझे बहुत पसंद है-
2- मेरे गुनाह की हद है तेरे करम की नहीं
...तू बख्श देता है छोटे से इक बहाने पर
ये तो दिल से निकली एक सच्ची आवाज़ है इस्मत. सच है, उस सर्वशक्तिमान का शुक्रिया अदा करने के लिये शब्द हैं ही कहां हमारे पास?
जवाब देंहटाएंwah.behad sunder.
जवाब देंहटाएंब्लॉग पर आने का बहुत-बहुत शुक्रिया....बेहद खूबसूरत शे'र
जवाब देंहटाएंवाह , क्या बात है
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत शब्द ...दिये हैं आपने इन पंक्तियों में ....।
जवाब देंहटाएं... behatreen !!!
जवाब देंहटाएंइस्मत जी ,
जवाब देंहटाएंबहुत ही खूबसूरत शेर है !
मुबारक हो !
-ज्ञानचंद मर्मज्ञ
बहुत ही ख़ूबसूरत शेर है
जवाब देंहटाएंऔर इसी बहाने शाहिद मिर्ज़ा के भी दो शेर पढने को मिल गए
बहुत खूब
@ Rashmi jee
जवाब देंहटाएंshukriyaa....lekin
ittefaq se ye dono_n hee sher mere nahi_n hai_n
इस्मत जी,
जवाब देंहटाएंनमस्कारम्!
यह एक उम्दा शे’र है! बधाई!
बहुत खूब!!
जवाब देंहटाएंबेहद ख़ुबसुरती से ख़ुदा से ग़ुज़ारीश की है आपने!!!!
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