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शनिवार, 26 मार्च 2011

"दो शेर और एक  .कता" पेशे ख़िदमत है 
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 दो शेर 
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दरे इलाह पे जाना सुकूँ का बाइस है
दिल - ए - शिकस्ता की वाहिद पनाहगाह है ये  
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 जो आ रहे हैं अक़ीदत से उन  को आने दो 
 मेरे रसूल (स. अ.) की नज़रों में सब बराबर हैं 
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.कता 
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जो मुझ को क़ूवत ए गोयाई तूने की है अता
  तो  जुर्रतें भी अता कर कि सच को सच कह पाऊँ

मैं इस गुनाह की गठरी से चंद कम कर लूं 
 जो राह ए मालिक ए कौनैन पे  क़दम रख पाऊँ 
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11 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत खुब, जी लेकिन बहुत मुस्किल हे आप की उर्दू

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  2. जो मुझ को क़ूवत ए गोयाई तूने की है अता
    तो जुर्रतें भी अता कर कि सच को सच कह पाऊँ
    सच्चे दिल से मांगी गई ईमानदार दुआ है ये. बहुत सुन्दर.

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  3. मेरे ब्लोक पर आपका स्वागत है -- आप की उर्दू बहुत मुस्किल हे...

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  4. जो मुझ को क़ूवत ए गोयाई तूने की है अता
    तो जुर्रतें भी अता कर कि सच को सच कह पाऊँ


    मैं इस गुनाह की गठरी से चंद कम कर लूं
    जो राह ए मालिक ए कौनैन पे क़दम रख पाऊँ
    bahut khubsurat

    जवाब देंहटाएं
  5. इस्मत जी लगता है अब आपको गुरू बनाना ही पडेगा। मुझे भी उर्दू सिखा दीजिये न। कता क्या होती है? बतायें। आपके शेर गज़ल के लिये कुछ कहना सूरज को दीप दिखाने के बराबर है। बहुत बहुत शुभकामनायें।

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  6. जो आ रहे हैं अक़ीदत से उन को आने दो
    मेरे रसूल (स. अ.) की नज़रों में सब बराबर हैं
    bahut badhiya...

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  7. जो मुझ को क़ूवत ए गोयाई तूने की है अता
    तो जुर्रतें भी अता कर कि सच को सच कह पाऊँ

    मैं इस गुनाह की गठरी से चंद कम कर लूं
    जो राह ए मालिक ए कौनैन पे क़दम रख पाऊँ
    bahut khoobsurat hai ye ahsaas

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  8. जो आ रहे हैं अक़ीदत से उन को आने दो
    मेरे रसूल (स. अ.) की नज़रों में सब बराबर हैं
    --------------- WAH...HAQ KAHA AAPNE.

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