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शनिवार, 26 जून 2010

मन्क़बत
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वली अल्लाह ने जंगों में गर तेवर दिखाए हैं 
तो मज़दूरी भी की ,तालीम दी और दिल मिलाए हैं

मिली भूके को रोटी और यतीमों को मिली ढारस
कि बंदों के सभी ग़म ले के मौला मुस्कराए हैं

वो नाबीना जो इक उम्मीद में हर वक़्त रहता था
तो नासिर बन के हैदर नुसरत ए लाग़र को आए हैं

अली ए मुरतज़ा की बादशाहत किस तरह की थी
कभी फ़ाक़ा,कभी रोज़ा,निवाले सूखे खाए हैं

ख़तीब ए वक़्त भी, मुश्किल कुशा भी रहनुमा भी हैं
हर इक हाजत रवा करने मदद को आप आए हैं

कहां इन्कार करना है ,कहां इक़रार करना है
इमामत ने हमें ये राज़ ए दुनिया भी बताए हैं

दम ए नज़’अ भी क़ातिल की बंधी मुश्कों को खुलवाकर
अली ने रह्म और इंसाफ़ के नुसख़े बताए हैं