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शनिवार, 9 जनवरी 2010

सलाम 
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मुस्लिमे ज़ीशान तेरी हर रेफाक़त को सलाम 
तेरे फ़ह्मो फ़िक्र में पिन्हाँ सदाक़त को सलाम 


बेअदब जो थी ज़ईफा हो गयी बीमार जब
की ख़बर गीरी मुहम्मद ,इस अयादत को सलाम 


मुफ़लिस ओ नादार को गंदुम की दे कर बोरियां 
ख़ुद किया फ़ाक़ा अली ,ऐसी केफालत को सलाम 


मुस्कुरा कर फ़तह की बेशीर ने जंगे अज़ीम 
काएदे तिफ्लाने आलम की क़यादत को सलाम 


ज़ुल्जनाहे शाह अस्पे बावफा तेरा ख़ुलूस
तू भी प्यासा ही रहा ,तेरी एआनत  को सलाम 


मुनहमिक सजदों में शह अहबाब थे सीना सिपर 
जाँ निसाराने शहे दीं की इबादत को सलाम 


रोक ली शब्बीर ने तलवार जब आई नेदा 
ऐ मुजाहिद तेरे इस सब्रो क़ेना अत को सलाम 


खानदाने हैदरी में हर कोई जर्रार था 
कर्बला वाले शहीदों की शहादत को सलाम 


अपने क़ातिल की बंधी मुश्कों को खुलवाकर 'शेफ़ा'
दे दिया इंसाफ़ को  मानी इमामत को सलाम 
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रविवार, 3 जनवरी 2010

सलाम
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यूँ सभी पैग़म्बरों की ज़ाते आला और है
हैं रसूले पाक अफ़ज़ल उनका रुतबा और है

अकरुबा भूखे रहे साएल को रोटी दे दिया
ये है किरदारे अली बाक़ी की दुनिया और है

जब हुए अब्बास के बाज़ू क़लम इक शोर था 
बावफ़ा दुनिया में  ऐसा कोई देखा और है

यूँ तो इस दुनिया में तक़रीरें बहुत सब ने सुनीं
शाम के दरबार में ज़ैनब का ख़ुतबा और है

बाद मरने के तेरे बेटा ये माँ क्योंकर जिए
अब हुआ मालूम के मर मर के जीना और है

है क़लम हथियार मेरा उनका है तेग़ ओ तबर 
"मेरी दुनिया और है दुनिया की दुनिया और है "

"  " ये तरह दी गयी थी