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मंगलवार, 7 मई 2013

कई माह के बाद एक हम्द ए पाक पेश ए ख़िदमत  है

हम्द ए बारि ए ता’ला
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ऐ मालिक ए सज़ा ओ जज़ा ,सादिक़ ओ अमीं
ऐ ख़ालिक़ ओ रहीम ओ वली ,रब्बुल आलमीं

दरिया, पहाड़ तूने बनाए जहान में
और वो परिंद उड़ते हैं जो आसमान में
इन्साँ को बख़्शी इल्म की दौलत क़ुरान में

ऐ मालिक ए सज़ा................................
ऐ ख़ालिक़ ओ रहीम.............................

जीने का हम को तूने सलीक़ा सिखा दिया
राह ए बहिश्त तेरे नबी(स.अ.) ने बता दिया 
तेरि रज़ा से ईसा ने मुर्दा जिला दिया

ऐ मालिक ए........................................
ऐ ख़ालिक़ ओ ....................................


वो दिन हो या कि रात नुमायाँ जगह जगह
हर शै में तेरी ज़ात नुमायाँ जगह जगह
मालिक तेरी सिफ़ात नुमायाँ जगह जगह

ऐ मालिक ए ........................................
ऐ ख़ालिक़ ओ .....................................


माँ , बाप ख़ानदान का साया दिया मुझे
सद शुक्र है कि माँ का भी रुतबा दिया मुझे
लौह ओ क़लम का क़ीमती तोहफ़ा दिया मुझे

ऐ मालिक ए .......................................
ऐ ख़ालिक़ ओ .....................................
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3 टिप्‍पणियां:

  1. जीने का हम को तूने सलीक़ा सिखा दिया
    राह ए बहिश्त तेरे नबी(स.अ.) ने बता दिया
    तेरि रज़ा से ईसा ने मुर्दा जिला दिया

    ऐ मालिक ए........................................वाह

    जवाब देंहटाएं
  2. कमाल,सुन्दर व् सार्थक प्रस्तुति.
    कभी यहाँ भी पधारें और लेखन भाने पर अनुसरण अथवा टिपण्णी के रूप में स्नेह प्रकट करने की कृपा करें |
    http://madan-saxena.blogspot.in/
    http://mmsaxena.blogspot.in/
    http://madanmohansaxena.blogspot.in/

    जवाब देंहटाएं

  3. माँ , बाप ख़ानदान का साया दिया मुझे
    सद शुक्र है कि माँ का भी रुतबा दिया मुझे
    लौह ओ क़लम का क़ीमती तोहफ़ा दिया मुझे--------

    जीवन दर्शन की सुंदर अनुभूति
    उत्कृष्ट प्रस्तुति
    बधाई

    "ज्योति"

    आग्रह है यहां भी पधारें
    कब तलक बैठें---

    जवाब देंहटाएं